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भारत को सिर्फ पाकिस्तान से ही नहीं, तुर्की से भी रहना चाहिए सावधान, एर्दोगन को इंडिया से क्यों है नफरत

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम जारी है। ऑपरेशन सिंदूर के जरिए भारत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया। तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता पहुंचाई। ड्रोन और सैन्य ऑपरेटर भेजे गए। भारत में तुर्की के सामान के बहिष्कार की मांग उठी। एर्दोगन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। भारत ने तुर्की की कंपनी का लाइसेंस रद्द कर दिया।

इस्तांबुल: भारत और पाकिस्तान में सैन्य झड़पों के बाद अब अस्थिर संघर्ष विराम जारी है। दोनों देशों ने संघर्ष विराम को लगातार बनाए रखने की बात की है। हालांकि, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए बता दिया है कि उसके दुश्मन पाकिस्तान में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई उन्हें चाहकर भी बचा नहीं सकती है। भारत के सटीक हमलों से न केवल आतंकी ढांचे मिट्टी में मिल गए, बल्कि पाकिस्तान के मददगारों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी। भारत की कार्रवाई इतनी प्रभावी थी कि पाकिस्तान को संघर्ष विराम के लिए हाथ-पैर जोड़ने पड़े। इसके बावजूद भारत ने सिंधु जल संधि का निलंबन वापस नहीं लिया है।

तुर्की ने की पाकिस्तान की सैन्य मदद

हालांकि, भारत-पाकिस्तान संघर्ष में तुर्की की भूमिका काफी चर्चा में रही। तुर्की ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद ही पाकिस्तान की सैन्य सहायता करनी शुरू कर दी थी। तुर्की की वायुसेना के ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट ने पाकिस्तान पहुंचकर ड्रोन और दूसरे सैन्य संसाधनों की डिलीवरी की थी। इसके अलावा तुर्की ने इन ड्रोन को चलाने के लिए अपने सैन्य ऑपरेटरों को भी पाकिस्तान में तैनात किया था। हालांकि, ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि भारत के हमलों में तुर्की के सिर्फ ड्रोन ही धुआं-धुआं नहीं हुए, बल्कि उसके दो सैन्य ऑपरेटर भी मारे गए।

तुर्की के हथियारों पर निर्भर पाकिस्तान

इस घटना से पूरी दुनिया को यह मालूम चला कि पाकिस्तान किस तरह से चीन और तुर्की निर्मित हथियारों पर काफी हद तक निर्भर है। भारत में, तुर्की का बहिष्कार करने की मांग बढ़ रही है, जो पहले से ही डंवाडोल उसकी अर्थव्यवस्था के लिए बुरा है। भारत के निजी क्षेत्र ने भी तु्र्की से खुद को दूर करना शुरू कर दिया है। प्राइवेट यूनिवर्सिटी से लेकर व्यापारिक कंपनियों ने तुर्की से अपने संबंधों को तोड़ने का ऐलान किया है। इतना ही नहीं, भारत ने तुर्की की कंपनियों की स्क्रूटनी भी शुरू कर दी है, जो देश में संवेदनशील क्षेत्र में काम कर रही हैं। इसी कड़ी में तुर्की की एक कंपनी को मुंबई एयरपोर्ट पर ग्राउंड ऑपरेशन करने से रोक दिया गया है।

पाकिस्तानी प्रॉपगैंडा को फैलाने की मदद

तुर्की ने सिर्फ हथियारों और सैन्य ऑपरेटरों से ही पाकिस्तान की मदद नहीं की, बल्कि उसके प्रॉपगैंडा को प्रचारित करने के लिए भी अपनी मशीनरी के इस्तेमाल की इजाजत दी। तुर्की की सरकारी और सरकार के प्रभाव वाले प्राइवेट मीडिया ने पाकिस्तान के बिना सिर-पैर के दावों को प्रचारित करना शुरू कर दिया था। इस दौरान तुर्की के मीडिया ने सामान्य बुद्धिमत्ता तक का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने आंख मूंदकर पाकिस्तान के झूठ में साथ दिया। सिर्फ इसलिए, क्योंकि उनके देश का पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध हैं। ऐसे में तुर्की की मीडिया ने जानबूझकर भारत के खिलाफ काम किया।

एर्दोगन ने भारत को चिढ़ाने की कोशिश की

भारत में तुर्की के बहिष्कार की बढ़ती आवाज के बाद रेसेप तैयप एर्दोगन ने उकसावे की कार्रवाई की। उन्होंने हाल में ही एक ट्वीट किया, जिसमें लिखा, “पाकिस्तान-तुर्की दोस्ती अमर रहे।” पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के संदेश का जवाब देते हुए एर्दोगान ने कहा, “अतीत की तरह, हम भविष्य में भी अच्छे और बुरे समय में आपके साथ खड़े रहेंगे।” एर्दोगन के इस ट्वीट को भारत को उकसाने के लिए किए गए कार्य के रूप में देखा गया। हालांकि, एर्दोगन यह जानते हैं कि पाकिस्तान से दोस्ती में तुर्की का कोई फायदा नहीं है, जबकि भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने में ही उनकी भलाई है।

भारत ने एर्दोगन को दिया जोर का झटका


भारत ने पाकिस्तान के मददगार तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन को जोर का झटका दिया है। दरअसल केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हित का हवाला देते हुए भारत भर में नौ प्रमुख हवाई अड्डों पर सेवाएँ संभालने वाली तुर्की की बहुराष्ट्रीय कंपनी सेलेबी एविएशन का लाइसेंस रद्द कर दिया है। अफ़वाहें हैं कि एर्दोआन की बेटी सुमेये की इस फ़र्म में हिस्सेदारी है। बस इतना ही नहीं। उनकी शादी सेल्कुक बायरकटर से हुई है, जो BAYKAR के चेयरमैन हैं। यह वह कंपनी है जो पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ड्रोन बनाती है।

एर्दोगन क्यों कर रहे पाकिस्तान की मदद

तुर्की में एर्दोगन की छवि एक तानाशाह और कट्टरपंथी नेता की है। वह न सिर्फ तुर्की के लोकतंत्र को कुचल रहे हैं, बल्कि अपने विरोधियों को रास्ते से हटाने के लिए हर हथकंडों को अपना रहे हैं। इससे तुर्की में एर्दोगन के खिलाफ भारी नाराजगी है। दूसरी बात कि तुर्की की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान की तरह ही खस्ताहाल है। ऐसे में अंदरूनी समस्याओं से लोगों का ध्यान हटाने के लिए एर्दोगन धर्म को हथियार बना रहे हैं। वह पाकिस्तान की मदद इस्लाम के नाम पर कर अपने देश में लोगों का ध्यान भटका रहे हैं। इतना ही नहीं, वह पाकिस्तान को साथ लेकर खुद को इस्लामी देशों का खलीफा भी बनाना चाहते हैं।

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