पहलगाम हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तान बौखला गया है। इसी बौखलाहट ने पाकिस्तान ने एक ऐसा फैसला लिया है, जो उसके लिए ही नुकसानदेह साबित होगा। बृहस्पतिवार को पाकिस्तान ने साल 1977 के ऐतिहासिक शिमला समझौते को निलंबित कर दिया। ये समझौता 1971 के युद्ध के बाद हुआ था।
इस्लामाबाद: पहलगाम हमले के बाद भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान तिलमिला गया है। भारत के सिंधु जल संधि पर रोक लगाने के फैसले को पाकिस्तान ने युद्ध की कार्रवाई बताया है। भारत ने मंगलवार को पहलगाम में आतंकी हमले में 28 लोगों की मौत के बाद 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कई ऐलान किए हैं। पाकिस्तान ने बृहस्पतिवार को 1972 के ऐतिहासिक शिमला समझौते को निलंबित करने की घोषणा की। यह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच हुई एक महत्वपूर्ण संधि थी। आइए जानते हैं कि पाकिस्तान के इस फैसले का क्या असर होगा।
क्या है शिमला समझौता?
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को हिमाचर प्रदेश के शिमला में हुआ था। इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के उस समय राष्ट्रपति रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद हुआ था, जिसमें पाकिस्तान के करारी हार हुई थी और पूर्वी पाकिस्तान आजाद होकर बांग्लादेश बना था। यह समझौता दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण कूटनीतिक मील का पत्थर था, जिसने युद्ध के बाद संबंधों की दिशा तय की और भविष्य की बातचीत के लिए प्रमुख सिद्धांतों की रूपरेखा तैयार की।
शिमला समझौते के तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि वे तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के बिना द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से विवादों को हल करेंगे। 1971 के युद्ध के दौरान 13,000 वर्ग किमी से अधिक जमीन जिसे भारत ने कब्जा कर लिया था, इसे वापस कर दिया गया। ऐसा करके भारत ने सद्भावना और शांति के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया। हालांकि, चोरबत घाटी में तुरतुक और चालुका जैसे रणनीतिक इलाकों को बरकरार रखा।
शिमला समझौते से बनी एलओसी
इस समझौते का एक अहम पहलू यह था कि इसने 1971 की युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा (LOC) में बदल दिया। इससे जम्मू और कश्मीर में वास्तविक सीमा स्थापित हो गई। समझौते ने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी पक्ष इस रेखा को एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश नहीं करेगा, जिससे यथा स्थिति मजबूत होगी। अब पाकिस्तान के इस फैसले को निलंबित करने से क्षेत्रीय नियंत्रण को बदलने के एकतरफा प्रयासों को बढ़ावा मिलेगा।
कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाएगा पाकिस्तान
शिमला समझौते के निलंबन से पाकिस्तान एलओसी को फिर से युद्धविराम रेखा के रूप में वर्गीकृत कर सकता है, जिससे सैन्य कार्रवाई पर कानूनी अड़चनें कम होंगी। यह पाकिस्तान के दृष्टिकोण में रणनीतिक बदलाव को चिह्नित करता है। पाकिस्तान अब कश्मीर संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय बनाने के लिए तीसरे पक्ष, जैसे संयुक्त राष्ट्र, चीन या इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) सहयोगियों की भागीदारी की मांग कर सकता है। यह शिमला ढांचे का सीधा उल्लंघन होगा।
पाकिस्तान में भारत पूर्व राजदूत जी पार्थसारथी के अनुसार, शिमला समझौते के निलंबन का अर्थ है कि पाकिस्तान अब कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। लाइव मिंट ने पार्थसारथी के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया है कि शिमला समझौते में एक खंड है, जिसके तहत भारत और पाकिस्तान सभी विवादों को द्विपक्षीय वार्ता से निपटाने पर सहमत हैं। पार्थसारथी ने कहा, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि शिमला समझौता समाप्त हो जाता है तो इसके स्थान पर क्या आएगा। अगर पाकिस्तान कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का प्रयास करता है, जैसा कि वह कर सकता है, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण होगा कि शिमला समझौता कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को पीछे छोड़ता है।
एक मरे हुए समझौते का अंतिम संस्कार
यह भले कहा जा रहा है कि शिमला समझौते से हटने के बाद पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय बनाने की कोशिश करेगा, लेकिन हकीकत यह है कि समझौते में रहते हुए भी पाकिस्तान यही करता रहा है। ओआईसी से लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर पाकिस्तान कश्मीर का राग अलापता रहता है। पाकिस्तान से जुड़े मामलों पर नजर रखने वाले विश्लेषक सुशांत सरीन इस्लामाबाद के इस फैसले को भारत के लिए महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं। बीबीसी से सरीन ने कहा, शिमला समझौते को पाकिस्तान बहुत पहले छोड़ चुका है। कारगिल की जंग और आए दिन सीमा पार से गोलीबारी इस बात का सबूत है कि वह इस समझौते को नहीं बताया है। सरीन ने पाकिस्तान के शिमला समझौते के निलंबन की घोषणा को ‘एक मरे हुए समझौते का अंतिम संस्कार’ बताया। उन्होंने कहा इसके भारत को कश्मीर पर बड़े फैसले लेने में मदद ही मिलेगी।
अगर शिमला समझौते के निलंबन के बाद पाकिस्तान अब नियंत्रण रेखा (LOC) को मान्यता नहीं देता है और यदि भारतीय सेना सीमा की परिभाषा तक पहुंचने के लिए पश्चिम की ओर बढ़ती है, तो इस्लामाबाद भारतीय तोपखाने, विशेष रूप से पिनाका जैसी रॉकेट प्रणालियों की पहुंच में होगा।
