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नई पीढ़ी की ऊर्जा और नई सदी की दिशा मोबाइल से नहीं, मूल्यों और अनुशासन से बनेगा भविष्य !

आज का भारत विश्व की सबसे युवा आबादी वाला देश है। यही युवा शक्ति आने वाले दशकों में भारत को ज्ञान, विज्ञान, तकनीक और नेतृत्व के शिखर पर ले जा सकती है। परंतु यह भी एक सच्चाई है कि नई पीढ़ी का बड़ा हिस्सा अनजाने में मोबाइल और डिजिटल दुनिया में अपना बहुमूल्य समय खो रहा है। यह लेख किसी निषेध का नहीं, बल्कि संतुलन और दिशा का आग्रह है।

विश्व के उदाहरण : तकनीक + अनुशासन
दुनिया के अनेक देशों ने यह समझ लिया है कि तकनीक तभी उपयोगी है, जब उस पर नियंत्रण हो।

Author : Ramendra rathore .

जापान में बच्चों को प्रारंभिक कक्षाओं में मोबाइल नहीं दिया जाता। वहाँ समयबद्ध दिनचर्या, पुस्तक-पठन और सामूहिक अनुशासन को प्राथमिकता दी जाती है।

दक्षिण कोरिया में डिजिटल शिक्षा के साथ “डिजिटल डिटॉक्स टाइम” अनिवार्य है, जहाँ विद्यार्थी प्रतिदिन कुछ घंटे स्क्रीन से दूर रहते हैं।

फिनलैंड जैसे देशों में मोबाइल कम, पुस्तक और संवाद अधिक है। वहाँ शिक्षा का आधार ध्यान, रचनात्मकता और संतुलित जीवन है।

जर्मनी में समय पालन को चरित्र का हिस्सा माना जाता है—लेट होना अस्वीकार्य है।

भारत के लिए सीख

हमें पश्चिम की नकल नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति के साथ वैश्विक श्रेष्ठता को अपनाना हो

भारतीय संस्कार : आधुनिक सफलता की जड़

भारतीय संस्कृति केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन-प्रबंधन का विज्ञान है।

भारतीय जीवन पद्धति की कुछ मूल आदतें आज भी विश्व की किसी भी प्रतिस्पर्धा में भारत को आगे रख सकती हैं—

  • सुबह जल्दी उठना

  • नियमित अध्ययन

  • गुरु–पुस्तक–परिवार का सम्मान

मोबाइल और लैपटॉप का विवेकपूर्ण उपयोग

तकनीक समस्या नहीं, उसका उपयोग ही भविष्य तय करता है

  • शिक्षा, शोध और कौशल विकास के लिए उपयोग

  • मनोरंजन सीमित और समयबद्ध हो

  • सोने से कम से कम 1 घंटा पहले स्क्रीन बंद हो

👉 इससे युवा की ऊर्जा सही दिशा में प्रवाहित होती है।

कब पढ़ें, कैसे पढ़ें

विश्व के सफल छात्र और वैज्ञानिक एक बात पर सहमत हैं—

सुबह का समय अध्ययन के लिए सर्वोत्तम होता है, क्योंकि:

  • स्मरण शक्ति बढ़ती है

  • मन शांत रहता है

  • निर्णय क्षमता मजबूत होती है

यही कारण है कि प्राचीन गुरुकुल से लेकर आज के टॉप विश्वविद्यालयों तक—अनुशासित दिनचर्या सफलता की नींव रही है।

रामायण की शिक्षा : समय और कर्तव्य

रामायण में भगवान श्रीराम का जीवन सिखाता है कि—

  • कर्तव्य

  • संयम

  • समय पालन

👉 इन्हीं से मर्यादा का निर्माण होता है।

वनवास जैसे कठिन समय में भी श्रीराम की दिनचर्या और अनुशासन अडिग रहा, इसलिए वे केवल राजा नहीं, आदर्श बने।

संस्कृत वाक्य:

“कालः कर्षति भूतानि।”
समय सबको अपने साथ खींच ले जाता है—
जो समय का सम्मान करता है, वही आगे बढ़ता है।

महाभारत : विवेक और नियंत्रण का संदेश

महाभारत में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश केवल युद्ध का नहीं, बल्कि—

  • आत्मनियंत्रण

  • एकाग्रता

  • लक्ष्य पर केंद्रित दृष्टि

अर्जुन का लक्ष्य भेदना यह सिखाता है कि—
मन भटके नहीं, दृष्टि केंद्रित रहे।

👉 आज का युवा यदि मोबाइल की अनावश्यक चंचलता से मुक्त हो जाए, तो उसकी क्षमता भी अर्जुन जैसी तीक्ष्ण बन सकती है।

पुस्तकें : मौन गुरु

  • मोबाइल क्षणिक आनंद देता है

  • पुस्तक दीर्घकालिक दृष्टि देती है

यदि नई पीढ़ी इन पुस्तकों को अपनाए—

  • भगवद् गीता – जीवन और कर्म का संतुलन

  • स्वामी विवेकानंद – युवा आत्मविश्वास

  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम – वैश्विक सोच वाला भारतीय

  • विश्व महापुरुषों की जीवनियाँ

👉 तो वे भारत में रहते हुए भी विश्व नागरिक बन सकते हैं।

पुस्तक बनाम स्क्रीन

अंग्रेज़ी में कहा गया है—

“A book is a dream that you hold in your hand.”

  • पुस्तकें मौन गुरु होती हैं

  • स्क्रीन क्षणिक आनंद देती है

  • पुस्तक स्थायी दृष्टि देती है

मित्रता और संबंध : मर्यादा का सौंदर्य

उर्दू शायरी बहुत सुंदर संतुलन सिखाती है—

“हद में रहकर अगर सब कुछ किया जाए,
तो ज़िंदगी भी इबादत बन जाती है।”

आज के वैश्विक समाज में लड़का–लड़की मित्र होना स्वाभाविक है,
पर—

  • सम्मान और स्पष्ट सीमाएँ आवश्यक हैं

  • असंयमित और उद्देश्यहीन संबंध न भारत के हित में हैं, न युवा के भविष्य में

भारतीय दृष्टि कहती है—
स्वतंत्रता हो, पर उत्तरदायित्व के साथ।

परिवार और समाज : मार्गदर्शक, नियंत्रक नहीं

  • अनेक देशों में माता-पिता बच्चों के मित्र होते हैं

  • भारत में भी संवाद और विश्वास बढ़ाने की आवश्यकता है

👉 डाँट से नहीं, उदाहरण से संस्कार बनते हैं।

समापन

नई पीढ़ी को दोषी ठहराना समाधान नहीं।
समाधान है—

  • दिशा देना

  • विश्वास देना

  • समय का मूल्य समझाना

यदि भारतीय युवा—

  • तकनीक का विवेकपूर्ण उपयोग करें

  • समय को संपत्ति समझें

  • संस्कार को कमजोरी नहीं, शक्ति मानें

👉 तो भारत केवल आर्थिक महाशक्ति ही नहीं,
मानवता और मूल्य-आधारित नेतृत्व का वैश्विक केंद्र बनेगा।

नया वर्ष

केवल तारीख नहीं बने,
बल्कि—
नई सोच, नया संतुलन और नई दिशा बने।

यही इस लेख का उद्देश्य है।

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