बंगलादेश जल रहा है, वहां के कट्टरपंथियों ने 27 जिलों में हिन्दू मंदिरों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और परिवारों को चुन चुन कर आग लगा दी है, पुरुषों को मारा जा रहा है, महिलाओं के साथ बलात्कार किया जा रहा है। सैंकड़ों बंगलादेशी हिन्दू अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं और हजारों की संख्या में हिन्दू शरणार्थी बनकर भारत की ओर चल पडे़ हैं, जिन्हें सीमा सुरक्षा बल ने बंगलादेश की सीमाओं पर ही रोक दिया है। प्रश्न यह है कि क्या इन सब घटनाक्रम से भारत के हिन्दू किसी सबक को सीख रहे हैं ?
शेख हसीना को अपदस्थ करने के लिए शुरू हुए इस आंदोलन को कट्टरपंथी मुसलमानों ने कब्जा लिया है और अब उनका निशाना वहां के हिन्दू हैं। वे हर हिन्दू को मार रहे हैं, और ये हिंसा बिना जातिगत भेदभाव के हो रही है। बंगलादेशी हिन्दुओं के पास भारत में शरण लेने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है| इन सबके पीछे जमाते इस्लामी है, जमाते इस्लामी से जुड़े लोग ट्रकों में भरकर विभिन्न हिन्दू बस्तियों में पहुंच रहे हैं। वे बस्तियों में आग लगा रहे हैं और भयभीत हिन्दुओं को मार रहे हैं। इतना ही नहीं, ऐसे फोटो भी सामने आए हैं, जिसमें हिन्दुओं को मारने के बाद उनके कपड़े उतारकर यह पुश्टि की जा रही है कि मरने वाला हिन्दू ही था। अराजकता अपने चरम पर है और मानवता वहां से पलायन कर चुकी है।
बंगलादेश में 2022 में हुई जनगणना के अनुसार वहां लगभग एक करोड़ तीस लाख हिन्दू हैं, जो उनकी कुल जनसंख्या का 7.95 प्रतिशत हैं। तो प्रश्न यह है कि क्या भारत सरकार को उन हिन्दू परिवारों को बंगलादेश के कट्टरपंथियों के लिए ही छोड़ देना चाहिए या नागरिकता संशोधन बिल में किए गए प्रावधानों के अनुसार उनको भारत में शरण देनी चाहिए। यह ध्यान में रहना चाहिए कि पूरे विश्व में भारत ही एक हिन्दू बहुसंख्यक देश है, और हर परिस्थिति में हर हिन्दू की पहली और आखिरी आशा भी भारत ही है।
प्रश्न यह भी है कि भारत में घुस आए लगभग तीन करोड़ बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए आखिर कब तक देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने रहेंगें? भारत के लगभग हर जिले में पहुंचे इन बंगलादेशी मुस्लिमों कोे देश से बाहर खदेड़ने के लिए क्या भारत सरकार किसी ठोस योजना पर काम कर रही है? इसी प्रकार लगभग 40 हजार रोहिन्गया मुसलमानों के भारत में घुस आने की बात तो मोदी सरकार ने 2017 में राज्यसभा में मानी थी।
यह तो तय है कि बंगलादेश में हो रहे हिन्दुओं पर अत्याचार पर गैर भाजपा विरोधी दल, कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी संगठन ना तो विरोध ही करेंगें और ना ही मोमबत्ती लेकर अपनी एकजुटता से हिन्दुओं को आश्वस्त करने का प्रयास ही करेंगें कि इस अराजक समय में वे भी बंगलादेशी हिन्दुओं के साथ हैं या वे जमाते इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों का विरोध करते हैं उल्टे कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने तो यह कहकर कि जो बंगलादेश में हो रहा है, वो भारत में भी हो सकता है, आग में घी ड़ालने का ही काम किया है।
प्रश्न यह भी पूछा जा रहा है कि जो भारत, प्राण बचाकर निकली बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण दे सकता है, क्या वह भारत बंगलादेश में अपनी जान बचाते हिन्दुओं- उनकी स्त्रियों और बच्चों को शरण नहीं दे सकता ? यह सवाल भावनात्मक जरूर है लेकिन यथार्थ की कठोर सच्चाई भी व्यक्त करता है। यह सरकार को ही तय करना है कि वो हिन्दुओं के मन में उठ रहे इस जटिल सवाल का प्रत्युत्तर कैसे देती है। यह भी गौर करने लायक बात है कि जितनी बैचेनी भारत के हिन्दुओं में बंगलादेशी हिन्दुओं की लाचारी को लेकर है, उसका सौवां प्रतिशत भी भारत में अवैध रूप से घुस आए बंगलादेशी मुसलमानों के बीच में नहीं है। यह परिस्थिति चिंताजनक है।
प्रश्न यह भी पूछा जा रहा है कि भारत के हिन्दू क्या करें? भारत के हिन्दू बंगलादेश के हिन्दुओं की सहायता के लिए सरकार के निर्णय और नीति पर आश्रित हैं, लेकिन कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की चुनौती को अनसुना नहीं करना चाहिए । यह भारत में रहने वाले हर हिन्दू के लिए चेतावनी और कड़वी सच्चाई है कि यदि भारत के हिन्दुओं को बंगलादेश जैसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा तो वे अपनी जान बचाने के लिए कहां जाएंगे? इस प्रश्न का जवाब हर समाज को व्यक्तिगत और जातिगत सामाजिक सुरक्षा के अनुसार नहीं अपितु सामूहिक संस्कार की अभिव्यक्ति के अनुसार सोचना होगा।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी, जयपुर
सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट
9 अगस्त 2024