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मुलायम और लालू यादव का दौर के मंत्रिमंडल के कारण आतिशी सरकार में केवल 5 MLA बने मंत्री, दिलचस्प है पॉलिटिकल किस्सा

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आतिश की सरकार में केवल पांच विधायकों को मंत्री बनने का मौका मिला। दिलचस्प बात यह है कि आतिशी की सरकार में कई विधायक शामिल होने की उम्मीदें लगाए बैठे थे, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की वजह से ऐसा नहीं हो सका। आइए जानते हैं दिलचस्प किस्सा।Delhi CM Oath Ceremony: आतिशी 21 सितंबर को लेंगी शपथ, अन्य मंत्री भी शपथ लेंगे

आतिशी मार्लेना के साथ पांच मंत्रियों सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, कैलाश गहलोत, इमरान हुसैन और मुकेश अहलावत को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। 70 विधायकों की वाली दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के 62 विधायक हैं।

आतिशी मार्लेना के केवल 5 मंत्री बनाने के पीछे लाल यादव और मुलायम जैसे नेताओं का लिंक कैसे यह जानने के लिए पूरी स्टोरी को पढ़ें

Delhi CM Oath Ceremony: आतिशी 21 सितंबर को लेंगी शपथ, अन्य मंत्री भी शपथ लेंगे

इस कनेक्शन को समझने के लिए हमें पॉलिटिकल किस्से के फ्लैशबैक में जाना होगा। दरअसल, यह साल 1990 के आखिरी और 2000 के शुरुआती दौर की है। जब देश और राज्यों में गठबंधन की सरकारें चल रही थीं। ऐसे में जो भी पार्टी सत्ता में होती वह किसी भी सूरत में अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए अपने हिसाब से कैबिनेट का विस्तार कर लिया करते थे।

जब राज्यों में बनने लगी थी जंबो कैबिनेट में सदस्यों को रखने की छूट का फायदा वैसे तो मुलायम सिंह यादव (98 मंत्री), मायावती (87 मंत्री), कल्याण सिंह (93 मंत्री), राम प्रकाश गुप्ता (91मंत्री), ज्योति बसु, राजनाथ सिंह (86 मंत्री), सुशील कुमार शिंदे (69 मंत्री) सरीखे नेताओं ने भी खूब उठाया। लेकिन यह चर्चा का विषय तब बनी जब लालू प्रसाद यादव ने दो मौकों पर कैबिनेट विस्तार की छूट की धज्जियां धड़ल्ले से उड़ाई।

पहली बार 24 जुलाई 1997 को जब लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में जेल जाने से पहले पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। राबड़ी देवी की सरकार के लिए बहुमत का नंबर जुटाने के लिए लालू यादव ने सरकार बनाने से पहले जनता दल को तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल बनाई। साथ ही राबड़ी देवी की सरकार को सपोर्ट करने के एवज में 70 से ज्यादा विधायकों को मंत्री बना दिया।

लालू ने इस छूट का दूसरी बार साल 2000 में इस्तेमाल किया। विधानसभा चुनाव में लालू यादव की पार्टी आरजेडी के 124 विधायक जीतकर आए। इस वजह से चंद दिनों के लिए नीतीश कुमार की अगुवाई में बिहार में सरकार बनी, लेकिन पहले ही बहुमत परीक्षण में फेल होने के बाद राबड़ी देवी की अगुवाई में फिर से सरकार बनी। राबड़ी देवी की इस सरकार को कांग्रेस, निर्दलीय, झामुमो और वाम दलों का सपोर्ट मिला।

सरकार गठन के दौरान राबड़ी देवी ने 70 मंत्री बनाए, लेकिन साल 2003 आते आते बिहार में मंत्रिमंडल का आकार 82 तक पहुंच गया। आलम यह था कि चुनाव में आरजेडी के खिलाफ लड़ने वाली कांग्रेस के 30 में से 29 विधायक मंत्री बन गए थे। यानी तब झारखंड के अलग होने के बाद 243 विधायकों वाली विधानसभा के करीब 34 फीसदी विधायक राबड़ी कैबिनेट का हिस्सा थे।

आलम यह हो गया था कि मंत्रियों को बांटने के लिए मंत्रालय तक कम पड़ गए थे। उस दौर में यह बात मीडिया की खूब सूर्खियां बनी। दरअसल, उस दौर में लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक प्रसिद्धि 7वें आसमान पर थी, जिसके चलते उनकी ओर से किया गया कोई भी अच्छा या बुरा राजनीतिक फैसला मीडिया में सुर्खियां बन जाया करती थी।

वहीं उस दौर में अटल बिहारी वाजपेयी केंद्र में 24 पार्टियों को साथ लेकर गठबंधन की सरकार चला रहे थे। इस वजह वजह से उन्हें सपोर्ट करने वाले सभी दलों के नेता मंत्री ले रहे थे। इस वजह से वाजपेयी की कैबिनेट में 80 सदस्य हो गए थे।

राज्यों और केंद्र की सरकारों में जंबो कैबिनेट पर लगी रोक

गठबंधन की सरकारों के दौर में केंद्र और राज्य दोनों की सरकारों में मंत्री पद की बंदरबाट चल रही थी। तभी साल 2003 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने संविधान का 91वां संशोधन किया। 2003 के अनुच्छेद 164 में खंड 1A जोड़ा गया। संविधान के 91वें संशोधन के बाद केंद्र या राज्यों में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या कुल सांसदों या विधायकों के 15 प्रतिशत से अधिक किसी भी सूरत में नहीं हो सकते हैं। यही वजह है कि 70 विधायकों वाली दिल्ली विधानसभा में 62 विधायक होने के बावजूद आतिशी मार्लेना अपने मंत्रिमंडल में खुद के साथ केवल पांच और सदस्यों को रख पाई हैं।

Hind News Tv
Author: Hind News Tv

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