ईरान और इसराइल के बीच बढ़ते ताज़ा तनाव का सबसे ज़्यादा असर कच्चे तेल के बाज़ार पर पड़ने की आशंका है. इसकी वज़ह से दुनिया भर में तेल की कीमत काफ़ी बढ़ सकती है.
यह आशंका अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के बयान के बाद बढ़ गई है।
उन्होंने कहा कि ईरान के तेल ठिकानों को इसराइल निशाना बना सकता है। इसके साथ ही, अमेरिका में इस संभावित हमले पर चर्चा हो रही है।
जब बाइडन से पूछा गया कि क्या अमेरिका इसराइल के हमले का समर्थन करेगा, उन्होंने कहा, ”हम इस पर चर्चा कर रहे हैं।”
बाइडन के इस बयान के बाद कच्चे तेल की कीमतों में पाँच फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
इसराइल- ईरान तनाव के ताज़ा हालात
ईरान का मिसाइल हमला
ईरान ने इसी सप्ताह मंगलवार की देर रात इसराइल की ओर सैकड़ों मिसाइलें दागीं। इससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया है।
हमले की संख्या और परिणाम
इसराइल के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, ईरान ने इसराइल पर 181 बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, जिसमें एक फ़लस्तीनी व्यक्ति की मौत हुई है।
पिछले हमले का संदर्भ
पाँच महीने पहले, यानी अप्रैल में, ईरान ने इसराइल पर क़रीब 110 बैलिस्टिक मिसाइल और 30 क्रूज़ मिसाइलों से हमला किया था। इसलिए, हालिया हमले ने स्थिति को और भी जटिल बना दिया है।
सुरक्षा बैठक और बयान
ईरान के ताज़ा मिसाइल हमले के बाद, बंकर में इसराइली सुरक्षा कैबिनेट की एक बैठक हुई। इसमें इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा, “ईरान ने आज एक बड़ी गलती की है, और उसे इसकी क़ीमत चुकानी होगी।”
तेहरान में हत्याएँ
जुलाई महीने में तेहरान में हमास के पॉलिटिकल विंग के प्रमुख इस्माइल हनिया की हत्या हो गई थी। इसलिए, ईरान इसके पीछे इसराइल का हाथ बताता है। हालाँकि, इस हत्या के तुरंत बाद ईरान ने इसराइल के ख़िलाफ़ कोई आक्रामक कदम नहीं उठाया।
हिज़्बुल्लाह नेता की हत्या
इसके बाद, इस साल 27 सितंबर को लेबनान में हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की मौत एक इसराइली हमले में हुई थी। ये दोनों नेता ईरान समर्थक माने जाते थे। इसलिए, माना जाता है कि उनकी हत्या के बाद ईरान पर भी अपने देश के अंदर से इसका जवाब देने का दबाव था।
मिसाइल हमले का कारण
ईरान का कहना है कि उसने इन दोनों हत्याओं का बदला लेने के लिए इसराइल पर मिसाइलें दागीं।
इसराइल का जवाबी हमला
बुधवार को इसराइली मीडिया में छप रही ख़बरों के अनुसार, इसराइल कुछ ही दिनों के भीतर ईरान के कुछ अहम रणनीतिक ठिकानों को निशाना बनाएगा। इन हमलों में ईरान के तेल के अहम ठिकानों पर हमले की भी अटकलें हैं।
विश्लेषक की राय
जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजॉल्यूशन की फ़ैकल्टी मेंबर प्रो. रेशमी काज़ी कहती हैं, “मध्य-पूर्व में जिस तरह का तनाव बना हुआ है, उसमें अगर ईरान के तेल कुओं और भंडार पर हमला होता है, तो इसका असर बड़े पैमाने पर होगा।”
आर्थिक प्रभाव
रेशमा काज़ी के मुताबिक, इससे न केवल तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा, बल्कि रणनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण कई रास्ते बंद हो सकते हैं। इससे अन्य चीजों की ढुलाई के लिए लंबा रास्ता लेना पड़ेगा, जिससे लागत और महंगाई बढ़ेगी।
वैश्विक असर
अंत में, रेशमा काज़ी मानती हैं कि कुल मिलाकर इसका सीधा असर भारत समेत दुनिया भर में आम लोगों पर पड़ेगा।
ईरान का तेल उत्पादन
ईरान दुनिया में तेल का सातवां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यह अपने तेल उत्पादन का क़रीब आधा निर्यात करता है, जिसमें चीन उसके प्रमुख बाज़ारों में से एक है।
चीन में तेल की मांग
हालांकि, इस साल चीन में तेल की कम मांग और सऊदी अरब से तेल की पर्याप्त सप्लाई ने तेल की कीमतों को बढ़ने से काफी हद तक रोके रखा है।
ईरान के संसाधन
दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल भंडार ईरान के पास है, जबकि ईरान में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैस भंडार भी मौजूद है।
ओपेक में स्थिति
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो प्रति दिन लगभग 30 लाख बैरल तेल का उत्पादन करता है। यह कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग तीन फीसदी है।
संभावित असर
इस बात की आशंका है कि, अगर इसराइल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया और उन्हें नष्ट किया, तो इससे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा और दुनिया भर में तेल की क़ीमतों में बड़ा इज़ाफा हो सकता है।
विश्लेषक की राय
रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी कहते हैं, “अगर इसराइल ईरान के तेल कुओं और ठिकानों पर हमला करता है, तो ज़ाहिर तौर पर इसका असर दुनिया भर के तेल बाज़ार पर पड़ेगा।”
वहीं, राहुल बेदी मानते हैं कि आर्थिक पाबंदियों की वजह से इस समय चीन ईरान से सबसे ज़्यादा तेल ख़रीदता है, जबकि भारत फ़िलहाल रूस से बड़ी मात्रा में कच्चा तेल खरीद रहा है।
भारत और चीन की स्थिति
लेकिन, यदि ईरान से तेल नहीं मिलता है, तो चीन में अन्य देशों से इसकी मांग बढ़ेगी और इसका असर तेल की क़ीमतों पर पड़ेगा।
मध्य-पूर्व में बढ़ते संघर्ष का तेल बाजार पर असर
हाल ही में, इसराइल पर ईरान के हमले के बाद मध्य-पूर्व में संघर्ष बढ़ने की आशंका गहरा गई है, जिसका सीधा असर तेल की कीमतों पर दिखाई दे रहा है।
ईरान के मिसाइल हमले का प्रभाव
इस प्रभाव को समझने के लिए, जब हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद केवल ईरान के मिसाइल हमले की आशंका जताई गई थी, तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतें क़रीब तीन फ़ीसदी बढ़ गई थीं।
इसराइल के संभावित हमले का परिणाम
इसलिए, यदि इसराइल ने ईरान के तेल ठिकानों को निशाना बनाया, तो इसका व्यापक असर अंतरराष्ट्रीय तेल बाज़ार पर हो सकता है।
ब्रेंट क्रूड की स्थिति
विशेष रूप से, ‘ब्रेंट क्रूड’ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों का बेंचमार्क है। इसके मुताबिक़, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के ईरानी तेल ठिकानों पर दिए गए बयान के बाद कच्चे तेल की क़ीमतों में पांच फ़ीसदी तक बढ़ोतरी हो चुकी है।
इसके आलावा, ‘ब्रेंट क्रूड’ के अनुसार सोमवार को इसराइल पर ईरान के मिसाइल हमलों के बाद कच्चे तेल की क़ीमतों में अब तक 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है, जिससे यह क़रीब 77 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। हालाँकि, यह अभी भी इस साल की अधिकतम कीमत से कम है।
भारत की स्थिति और संभावनाएँ
राहुल बेदी के अनुसार, “इस मामले में भारत के पक्ष में एक बात हो सकती है कि यदि ईरान से सप्लाई कम होती है, तो भारत रूस के ख़रीदे हुए तेल को दूसरे देशों को ज़्यादा दाम पर बेच सकता है। लेकिन,** इसका भारत पर कैसा जियो-पॉलिटिकल दबाव होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है।”
रूस-यूक्रेन संकट और भारत का दृष्टिकोण
याद रहे कि फ़रवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए। इससे निपटने के लिए, रूस ने भारत समेत कई देशों को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से कम क़ीमत पर कच्चा तेल बेचने की पेशकश की थी।
इसके अतिरिक्त, पिछले साल मई में यूरोपीय संघ के विदेश नीति मामलों के प्रमुख जोसेप बुरेल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि भारत बड़े पैमाने पर रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है और उसे प्रोसेस कर आगे यूरोप को निर्यात कर रहा है। उन्होंने इसे पाबंदियों को तोड़ने जैसा बताया था और कहा कि सदस्य देशों को इसे रोकने के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है।
अंत में, रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों में साल 2022 में भारत का यूरोप के तेल उत्पादों का निर्यात 70 फीसदी तक बढ़ा है।