मुंबई : मुंबइया फिल्मों की मसाला फिल्मों में जितने ट्विस्ट और एंगल होते हैं, वैसा ही पिछले पांच साल में महाराष्ट्र की राजनीति में हुआ। दोस्ती में दरार, नया याराना, बगावत, भारी-भरकम डायलॉगबाजी यानी एक्शन और इमोशन से भरपूर। 2024 का चुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब महाराष्ट्र की राजनीति में काफी उठापटक हो चुकी है।
पुराने दिग्गज, न्यू एंट्री, नये नियम और नया इतिहास
इस चुनाव मैदान में बीजेपी और कांग्रेस तो वैसी ही है, शिवसेना और एनसीपी के दो गुट भी हैं। 2019 के चुनाव में चार बड़े राजनीतिक दल बीजेपी, कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच मुकाबला था। इस बार छह पॉलिटिकल पार्टियां हैं। इन पांच वर्षों में महाराष्ट्र में तीन सरकार, तीन मुख्यमंत्री और तीन उप मुख्यमंत्री भी मिले। कई राजनीतिक घटनाएं पहली बार हुईं। ठाकरे परिवार से पहली बार उद्धव ठाकरे सीएम बने और उनका बेटा आदित्य ठाकरे कैबिनेट मंत्री बनाए गए। सीएम रहे देवेंद्र फड़णवीस को शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बनना पड़ा। अजित पवार सभी तीन सरकारों का हिस्सा रहे और डिप्टी सीएम बने रहे।
पहली सीन में उलझी कहानी : चुनाव बाद नया गठबंधन, नए दोस्त
पांच साल पहले 2019 में 24 अक्टूबर को जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आए थे, तो एनडीए यानी बीजेपी और शिवसेना में खुशी की लहर थी। इस गठबंधन को 161 सीटों में जीत मिली थी। फिर इस गठबंधन में सीएम पोस्ट को लेकर रस्साकशी का दौर शुरू हुआ। करीब एक महीने तक शिवसेना और बीजेपी के नेताओं के बीच बयानबाजी का दौर चला। 23 नवंबर की सुबह बीजेपी के नेता शिवसेना के समर्थन के बिना देवेंद्र फड़णवीस ने सीएम पद की शपथ ली। उनके साथ अजित पवार भी डिप्टी सीएम बने, मगर अचानक राजनीति ने करवट ली। शरद पवार ने महाविकास अघाड़ी की नींव रख दी। फड़णवीस की सरकार पांच दिनों में गिर गई। 28 फरवरी को उद्धव ठाकरे सीएम बने और मातोश्री से वर्षा बंगला पहुंच गए।
अचानक आया ट्विस्ट, ऐसा लगा कि दूसरे सीन में क्लाइमैक्स आ गया
25 साल साथ रहने के बाद बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन टूट गया। फिर दोनों राजनीतिक दलों ने गठबंधन के नए प्रयोग किए। शिवसेना अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और एनसीपी के साथ चली गई। उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार ढाई साल चली। इस दौरान बीजेपी को महाराष्ट्र में कोई नया पार्टनर नहीं मिला। फिर महाराष्ट्र में बगावत का पहला खेल शुरू हुआ। एमएलसी चुनाव में शिवसेना के 12 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। फिर एकनाथ शिंदे 16 विधायकों के साथ सूरत चले गए। फिर वह गुवाहाटी पहुंचे तो शिवसेना के बागियों की संख्या बढ़ती गई। 20 जून को उद्धव सरकार में मंत्री रहे एकनाथ शिंदे ने दावा किया कि उनके पास 40 विधायक हैं। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए 30 जून तक मोहलत दी। 29 जून 2022 को उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद बीजेपी को शिवसेना (शिंदे) के तौर पर नया पार्टनर मिल गया।
फिर आया गजब का इंटरवल: 40 विधायकों के साथ बागी बने शिंदे
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जब बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना विधायक दल की बैठक हुई तो एकनाथ शिंदे सीएम की रेस में सबसे आगे थे। आदित्य ठाकरे ने ही उनके नाम का प्रस्ताव रखा था। उनके नाम पर विधायक भी राजी थे, मगर कांग्रेस और एनसीपी की आपत्ति के बाद उद्धव ठाकरे ने खुद सरकार की कमान संभाल ली। यह टीस एकनाथ शिंदे के मन में बनी रही। 40 बागी और निर्दलियों के समर्थन से वह 30 जून 2022 को महाराष्ट्र के 20वें मुख्यमंत्री बन गए। यह महाराष्ट्र में चल रही राजनीतिक उठापटक का इंटरवल था। इसके बाद के ढाई साल शिंदे ही सरकार के मुखिया रहे। बीजेपी ने सीएम पद देकर अपनी सरकार को स्थिर कर लिया। इस सियासी घमासान में एक और नाटकीय मोड़ बाकी था।
शह मात वाली सत्ता का खेल: अजित पवार ने भी चाचा से बगावत की
एकनाथ शिंदे की सरकार मजे से चल रही थी। बहुमत का आंकड़ा भी पक्ष में था, बीजेपी, 12 निर्दलीय, 9 अन्य के साथ करीब 178 विधायक सरकार के समर्थन में थे। अचानक शरद पवार की पार्टी एनसीपी में उथल-पुथल शुरू हुई। एक साल बाद जुलाई 2023 में अजित पवार 40 विधायकों के साथ बागी हो गए। उन्होंने भी महायुति में शामिल होने का फैसला किया और शिंदे सरकार में डिप्टी सीएम बन गए। 288 सदस्यों की विधानसभा में महायुति के सदस्यों की संख्या 218 पहुंच गई।
बदल गई पहचान: जो पुराने थे, उन्हें मिला नया चुनाव चिन्ह
दो बगावत के बाद महाराष्ट्र में दो नई पार्टियां शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) बनीं, जो इन दलों के मुखिया को मजबूरन बनाना पड़ा। चुनाव आयोग और कोर्ट ने पार्टी सिंबल बागियों को दे दिया। विधानसभा में भी दोनों नेता अपना दांव पहले ही हार चुके थे। उद्धव ठाकरे को नया चुनाव चिह्न मशाल और शरद पवार को तुरही मिली। शिंदे के पास पुराना चुनाव चिन्ह धनुष-बाण चला गया। घड़ी भी अजित पवार के पास आ गई। नए चुनाव चिह्न के साथ ये लोकसभा चुनाव में उतरे और कामयाब रहे।
लोकसभा चुनाव में जीती अघाड़ी, मगर पिक्चर अभी बाकी है
लोकसभा चुनाव में शिवसेना (उद्धव) को 9 सीटें मिलीं। बगावत के बाद उनके पाले में सिर्फ 4 सांसद बचे थे। शरद पवार की एनसीपी के भी 8 सांसद तुरही चुनाव चिह्न के साथ जीते। धनुष-बाण चुनाव चिह्न होने के बावजूद शिंदे 7 सीटों पर सफल रहे। घड़ी ने अजित का साथ नहीं दिया और उन्हें एक सीट मिली। बीजेपी को 14 सीटों का नुकसान हुआ और उसके सिर्फ 9 सांसद चुने गए। कांग्रेस को 12 सीटों का फायदा हुआ और वह 13 सीटें जीत गईं। इस तरह महाविकास अघाड़ी ने 48 में से 30 सीटें जीत लीं और महायुति को 17 सांसदों से ही संतोष करना पड़ा। अब चुनाव की घोषणा होने वाली है यानी क्लाइमैक्स अभी बाकी है।