नई दिल्ली: अपराधियों पर बुलडोजर ऐक्शन पर सुप्रीम कोर्ट आज अपना फैसला सुना रहा है। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने अपनी टिप्पणी में कई अहम बातें कही हैं। कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर ऐक्शन कानून नहीं होने का भय दिखाता है। कोर्ट बुलडोजर ऐक्शन पर पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी करेगी। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। पिछली सुनवाई में, अदालत ने अपराधों के आरोपियों को निशाना बनाने वाली अवैध विध्वंस कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस तरह की कार्रवाई का एक भी उदाहरण संविधान की भावना के खिलाफ है। साथ ही इस तरह के मामलों में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
➤कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी घोषित नहीं कर सकती। केवल आरोप के आधार पर यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर तोड़ती है,तो यह कानून के शासन के बुनियादी सिद्धांत पर प्रहार करेगा। कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती और न ही किसी आरोपी की संपत्ति को ध्वस्त करने का निर्णय ले सकती है
➤कार्यपालिका द्वारा की गई ज्यादतियों से कानून की कड़ी शक्ति से निपटा जाना चाहिए। हमारे संवैधानिक आदर्श ऐसे किसी भी शक्ति के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते। यह कानून के न्यायालय द्वारा सहन नहीं किया जा सकता।
➤जब किसी विशेष संरचना को अचानक से ध्वस्त करने के लिए चुना जाता है और उसी प्रकार की बाकी संपत्तियों को नहीं छुआ जाता, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि असली उद्देश्य कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि बिना सुनवाई के दंडित करना था।
➤आवास का अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। यदि लोगों को उनके घरों से बेदखल करना पड़े,तो अधिकारियों को यह साबित करना चाहिए कि ध्वस्तीकरण ही एकमात्र उपलब्ध विकल्प है। घर के एक हिस्से को ध्वस्त करने के बजाय अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए।
➤रात के समय महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर घसीटते देखना सुखद दृश्य नहीं है। बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई ध्वस्तीकरण नहीं किया जाना चाहिए, जो या तो स्थानीय नगरपालिका कानूनों में दिए गए समय के अनुसार या सेवा की तारीख से 15 दिनों के भीतर (जो भी बाद में हो) प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यह नोटिस पंजीकृत डाक के माध्यम से मालिक को भेजा जाएगा और संरचना के बाहरी हिस्से पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, विशेष उल्लंघन का विवरण और डेमोलेशन के आधार शामिल होने चाहिए।
➤अथॉरिटी को आरोपी को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर देना होगा। ऐसी बैठक के विवरण को रिकॉर्ड किया जाएगा। प्राधिकारी के अंतिम आदेश में नोटिसधारी के पक्षों को शामिल किया जाना चाहिए। डेमोलशन की प्रक्रिया का वीडियो रिकॉर्डिंग किया जाएगा। डेमोलेशन रिपोर्ट को एक डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
➤किसी भी निर्देश के उल्लंघन से अवमानना कार्यवाही शुरू की जाएगी। अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिए कि यदि ध्वस्तीकरण को निर्देशों के उल्लंघन में पाया जाता है, तो उन्हें ध्वस्त की गई संपत्ति की पुनर्स्थापना के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। अधिकारियों को व्यक्तिगत खर्च पर जवाबदेह ठहराया जाएगा, साथ ही हर्जाने का भुगतान भी करना होगा।
मनमाने तरीके से घर नहीं गिरा सकते- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने फैसला पढ़ते हुए साफ कहा कि प्रशासन मनमाने ढंग से किसी का घर नहीं गिरा सकते। अगर ऐसा कोई भी अधिकारी किसी का भी घर मनमाने या अपनी मर्जी से गिराता है, तो उसपर कार्यवाई भी होनी चाहिए। पीठ ने आगे कहा कि अगर यह पाया गया कि घर अवैध तरीके से गिराया गया है तो, उसके लिए मुआवजा भी मिलेगा। बिना किसी का पक्ष सुने कार्यवाही न की जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्राशसन जज नहीं बन सकता।
अपराध की सजा पूरे परिवार को नहीं- सुप्रीम कोर्ट
बुलडोजर ऐक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि आप आरोपी के कारण उसके पूरे परिवार को परेशान नहीं कर सकते। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि हमारा यह फैसला किसी एक राज्य के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है। इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि कार्रवाई के लिए नोटिस डीएम को दी जाए। नोटिस में यह भी बताएं कि यह मकान कैसे अवैध है या कौन सा हिस्सा अवैध है। बेंच ने कहा कि 3 महीने में पोर्टल बनाकर नोटिस साझा किए जाएं। यही नहीं, अवैध निर्माण को गिराने के लिए पहले से बताना जरूरी है। कोर्ट न कहा कि हमने आर्टिकल 142 के तहत फैसला सुनाया है।
दोष सिद्ध करने के लिए पहले से फैसला मत लें- जस्टिस गवई
बुलडोजर ऐक्शन पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि घर होना एक ऐसी चाहत है जो कभी नहीं मिटती,हर परिवार का सपना होता है एक घर। उन्होंने आगे कहा कि एक महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या कार्यपालिका को सजा के प्रमुख रूप में आश्रय छीनने की अनुमति दी जानी चाहिए। जस्टिस गवई ने आगे कहा कि कानून का शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है। मसला आपराधिक न्याय प्रणाली में निष्पक्षता का है,जो यह कहती है कि कानूनी प्रक्रिया को आरोपी का दोष सिद्ध करने के लिए पहले से ही निर्णय नहीं करना चाहिए।