अमिताभ बच्चन और रजनीकांत को एक साथ परदे पर देखने के लिए सिनेमाघरों के बाहर दर्शकों की कतार लग जाती, लेकिन ऐसा तो तब भी नहीं हो पाया था जब ये दोनों सितारे एक साथ 33 साल पहले फिल्म ‘हम’ में एक साथ आए थे। मुकुल एस आनंद की इस कोशिश के बाद अब अपनी पिछली फिल्म ‘जय भीम’ से चर्चा में आए निर्देशक टी जे ज्ञानवेल ने ऐसा कर दिखाया है। अमिताभ बच्चन की एक दर्जन से ज्यादा हिंदी फिल्मों के तमिल रीमेक में काम कर चुके रजनीकांत और फिल्म ‘वेट्टैयन’ के निर्माता अलीरजा सुभाषकर का याराना बहुत पुराना है। सुभाषकरन की तिजोरियां रजनीकांत के लिए शुरू से खुली रही हैं, इस बार इससे निकली ‘लक्ष्मी’ हिंदी और तमिल के सुपरसितारों के अलावा मलयालम सिनेमा के सुपरस्टार फहद फासिल और तेलुगु सिनेमा के सुपरस्टार राणा दग्गूबाजी पर भी बरसी है। चार भाषाओं के चार सुपरस्टार लाना ही इस फिल्म का मकसद रहा होगा क्योंकि जिन्होंने ‘जय भीम’ देखी है, उन्हें टी जे ज्ञानवेल की ये फिल्म देखकर ज्यादा खुशी होती नहीं दिखती।
अमिताभ का तमिल सिनेमा में डेब्यू
अमिताभ बच्चन के जन्मदिन की पूर्वसंध्या पर रिलीज हुई फिल्म ‘वेट्टैयन’ एक तरह से तमिल सिनेमा में उनका डेब्यू है। फिल्म के लीड हीरो रजनीकांत हैं और अमिताभ बच्चन फिर एक बार विशेष भूमिका में हैं। ‘अंधा कानून’ याद है ना आपको? कानून से न्याय न मिल पाने पर कानून को हाथ में लेने की कहानी में अक्सर पुलिस और अपराधी चूहे और बिल्ली का खेल खेलते नजर आते हैं। लेकिन, यहां हीरो ही शिकारी है। वह खम ठोंककर कहता है कि निशाना लगे और खाली चला जाए, हो ही नहीं सकता। फिल्म का नाम ‘वेट्टैयन’ है जिसका मतलब है शिकारी। हिंदीभाषी दर्शक ये मतलब ठीक से समझ पाएं इसलिए हिंदी संस्करण का नाम ही ‘वैट्टैयन-द हंटर’ रख दिया गया है। शिकारी यहां पुलिस अफसर अथियन है जो अपराधियों को ‘त्वरित न्याय’ के जरिये निपटाने में यकीन रखता है। उसका अपना खुफिया नेटवर्क है। लेकिन, जस्टिस सत्यदेव ब्रह्मद्त पांडे की नजर उस पर टेढ़ी हो चुकी है। अथियन को भी बीच कहानी अपनी गलतियों का एहसास होता है और वह प्रायश्चित भी करना चाहता है और यहां से ऊंट दूसरी करवट बैठने की शुरूआत करता है।
दो बुजुर्ग कलाकारों का दमखम
अमिताभ बच्चन और रजनीकांत को उनके यौवन से लेकर प्रौढावस्था तक दर्शकों ने खूब देखा। दोनों पर दिल खोलकर मोहब्बत लुटाई। अब भी उनका रुआब दर्शकों में बना हुआ है। रजनीकांत की पिछली फिल्म ‘जेलर’ में ये सब देख चुके हैं। अमिताभ बच्चन की पिछली ‘कल्कि 2898 एडी’ भी ब्लॉकबस्टर रही। उनका करिश्मा इस फिल्म में साउथ सुपरस्टार प्रभास पर भी भारी पड़ा। दोनों अपनी अपनी उम्र के हिसाब से किरदार करते हैं तो कमाल करते हैं। फिल्म ‘वेट्टैयन’ की मूल कमजोरी इन्हीं दोनों के किरदारों में हैं। टी जे ज्ञानवेल समाज में जो हो रहा है, उसी को अपना सिनेमा बनाते हैं। एनकाउंटर में बदमाशों के मारे जाने का मामला नया नहीं है लेकिन इन दिनों सुर्खियों में फिर से है। लेकिन, ज्ञानवेल ने जो फिल्म बनाई है, वह उनकी इसी सोच से मात खा जाती है कि वह एक अखिल भारतीय फिल्म बनाने के लिए चार भाषाओं के चार सुपरसितारे ले आए हैं।
प्रोजक्ट बनाया पर सिनेमा बनाने से चूके
हिंदी पट्टी में जादू सजना मुश्किल
फिल्म ‘वेट्टैयन’ के चार कोने अगर इन चार दिग्गज सितारों ने संभाले हैं तो इनका केंद्र बिंदु बनने में दुशारा विजयन ने भी कम मेहनत नहीं की है। स्कूल टीचर का उनका ये किरदार ही कहानी को गति देने वाले उत्प्रेरक का काम करता है। पूरी फिल्म चूंकि एक प्रोजेक्ट की तरह बनी है लिहाजा इसमें टी जे ज्ञानवेल का ‘जय भीम’ वाला सामाजिक सहधर्मिता वाला फिल्मकार नजर नहीं आता। यहां वह सितारों की चकाचौंध में अपना खुद का आभामंडल खो देने वाले निर्देशक के रूप में हैं। करीब पौने तीन घंटे की ये फिल्म बताते हैं कि 300 करोड़ रुपये में बनी है, उस लिहाज से इसकी ओपनिंग बहुत अच्छी नहीं रही है। फिल्म के हिंदी संस्करण का हाल और खराब दिख रहा है। अनिरुद्ध रविचंदर एक बार फिर उत्तर भारतीय दर्शकों को अपने संगीत के साथ जोड़ने में नाकाम रहे हैं। एस आर काथिर की सिनेमैटोग्राफी भी बस सितारों की सज-धज के लिए सधी रहती है।