दमिश्क में ईरानी दूतावास के फर्श पर टूटे शीशे और पैरों तले रौंदे हुए झंडों के बीच ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के पोस्टर लगे हुए हैं. इनमें लेबनान के हिज़्बुल्लाह आंदोलन के पूर्व नेता हसन नसरल्लाह की फटी हुई तस्वीरें भी हैं.
दूतावास के बाहर लगी फ़िरोज़ी रंग की टाइलें अब भी चमक रही हैं लेकिन ईरान के बेहद प्रभावशाली पूर्व सैन्य रिवोल्यूशनरी गार्ड कमांडर कासिम सोलेमानी के एक बड़े-से बैनर को भी नष्ट किया गया है.
कासिम सोलेमानी को डोनाल्ड ट्रम्प के पहले राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, उनके आदेश पर मार दिया गया था.
ईरान अपने घावों को सहला रहा है, साथ ही डोनाल्ड ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति पद बैठने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में क्या वो एक बार फिर पश्चिम के साथ वार्ताएं शुरू करना चाहेगा? क्या इस सारे घटनाक्रम ने ईरान के तंत्र को कमज़ोर कर दिया है?
असद की सत्ता ख़त्म होने के बाद दिए गए अपने पहले भाषण में ईरान के 85 वर्षीय सुप्रीम लीडर अली ख़ामेनेई ने दावा किया, “ईरान मजबूत और शक्तिशाली है – और अब ये और भी मजबूत हो जाएगा.”
साल 1989 के बाद से देश पर राज करने वाले ख़ामेनेई इस वक़्त अपने उत्तराधिकार की चुनौतियों से भी दो चार हैं.
अपने भाषण में उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मध्य पूर्व में ईरान के नेतृत्व वाले गठबंधन के ‘प्रतिरोध का दायरा’ और भी मज़बूत होगा. ईरान के इस गठबंधन में हमास, हिज़्बुल्लाह, यमन के हूथी विद्रोही और इराक़ी शिया मिलिशिया शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “आप जितना अधिक दबाव डालेंगे, प्रतिरोध उतना ही ज़ोरदार होगा. आप जितना ज़ुल्म करेंगे, ये उतना ही अधिक मज़बूत होता जाएगा.”
लेकिन 7 अक्टूबर 2023 को इसराइल में हमास के नरसंहार का ईरान ने स्वागत किया था. लेकिन ताज़ा बदलावों के बाद तेहरान की सत्ता हिली हुई लगती है.
अपने दुश्मनों के ख़िलाफ़ इसराइल की जवाबी कार्रवाई ने मध्य पूर्व को बहुत हद तक बदला दिया है. और इसकी वजह से ईरान काफ़ी हद तक बैकफुट पर है.
पूर्व अमेरिकी राजनयिक और उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेम्स जेफ़री अब विल्सन सेंटर थिंक-टैंक में काम करते हैं.
उनका कहता है, “सभी मोहरे एक के बाद एक गिर रहे हैं. ईरानी प्रतिरोध की धुरी को इसराइल ने तोड़ दिया है. सीरिया की घटनाओं ने तो इसे नष्ट ही कर दिया है. ईरान के पास यमन में हूथी विद्रोहियों के अलावा इस क्षेत्र में कोई वास्तविक प्रतिनिधि नहीं बचा है.”
ईरान अभी भी पड़ोसी देश इराक़ में शक्तिशाली मिलिशिया को पूरा समर्थन देता है. लेकिन जेफरी के अनुसार, “यह इस इलाक़े में काफ़ी प्रभाव रखने वाली एक शक्ति का अभूतपूर्व पतन है.”
सीरिया के अपदस्थ राष्ट्रपति बशर अल-असद को आख़िरी बार सार्वजनिक रूप से एक दिसंबर को ईरानी विदेश मंत्री के साथ एक बैठक में देखा गया था. उस वक्त असद ने सीरिया की राजधानी की ओर बढ़ रहे विद्रोहियों को “कुचलने” की कसम खाई थी.
सीरिया में ईरान के राजदूत होसैन अकबरी ने असद को ‘प्रतिरोध की धुरी में सबसे आगे” खड़ा बताया था. इसके बावजूद जब असद का अचानक पतन हुआ तो ईरान उसकी हिमायत में लड़ने के लिए असमर्थ और अनिच्छुक दिखा.
ईरान ने कैसे बनाया था अपना नेटवर्क
ईरान ने इस क्षेत्र में प्रभाव बनाए रखने के साथ-साथ, संभावित इसराइली हमले से बचने के लिए कई दशक लगाकर हथियारबंद गुटों का एक नेटवर्क तैयार किया है.
इसका इतिहास 1979 की ईरान की इस्लामी क्रांति से शुरू होता है.
इसके बाद इराक़ के साथ हुए युद्ध में बशर अल-असद के पिता हाफ़िज़ ने ईरान का समर्थन किया था.
ईरान में शिया मौलवियों और असद के बीच गठबंधन ने, मुख्य रूप से सुन्नी-बहुल मध्य पूर्व में ईरान के पावर बेस को मजबूत करने में मदद की थी.
असद परिवार शिया इस्लाम की एक शाखा, अल्पसंख्यक अलावी संप्रदाय से आता है.
सीरिया ईरान के लिए लेबनान, हिज़्बुल्लाह और अन्य क्षेत्रीय हथियारबंद समूहों तक ईरान हथियार पहुँचाने का एक मुख्य रूट था.
ईरान पहले भी असद की मदद के लिए आया था. 2011 में अरब स्प्रिंग के दौरान हुए विद्रोह के गृह युद्ध में तब्दील हो जाने के बाद जब असद असुरक्षित दिखे, तो उन्हें तेहरान ने अपने लड़ाके, ईंधन और हथियार मुहैया कराए.
इसके अलावा सीरिया में ‘सैन्य सलाहकार’ के रूप में तैनात 2,000 से अधिक ईरानी सैनिक और जनरल भी मारे गए थे.
थिंक टैंक चैटम हाउस में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के निदेशक डॉ. सनम वकील कहते हैं, “हमें मालूम है कि ईरान ने सीरिया में 2011 के आसपास से $30 बिलियन से $50 बिलियन तक खर्च किए हैं.”
अब वह रूट जिसके ज़रिए ईरान भविष्य में, लेबनान में हिज़्बुल्लाह और अन्य गुटों को हथियार और मदद भेज सकता था, वो बंद हो गया है.
डॉ. वकील का तर्क है, “प्रतिरोध की धुरी एक अवसरवादी नेटवर्क था जो ईरान को एक रणनीतिक बढ़त देता था. ईरान से इसे सीधे हमले से बचने के लिए डिज़ाइन किया था. साफ़ है कि ये एक रणनीति विफल रही है.”
अब ईरान की प्राथमिकता अपना अस्तित्व बनाए रखना होगा.
डॉ. वकील कहते हैं, “वह खुद को फिर से स्थापित करने, प्रतिरोध की धुरी में जो कुछ बचा है उसे मजबूत करने की कोशिश करेगा.”
डेनिस होराक ने कनाडा के राजनयिक के रूप में ईरान में तीन साल बिताए हैं. वे कहते हैं, ”ईरानी सरकार में काफ़ी दम है. और वे अब भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं.”
उनका तर्क है कि ईरान के पास अब भी गंभीर मारक क्षमता है. और इसराइल के साथ टकराव की स्थिति में वो इसका इस्तेमाल खाड़ी के अरब देशों के ख़िलाफ़ कर सकता है. डेनिस होराक ईरान को काग़ज़ी शेर मानने के किसी भी नज़रिए के प्रति आगाह करते हैं.
डॉ. वकील कहते हैं, “ईरान निश्चित रूप से अपनी रक्षा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन करेगा. अब तक इन नीतियों के केंद्र में प्रतिरोध की धुरी थी.”
“ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर भी दोबारा सोच सकता है. वो ये तय कर सकता है कि अपनी सुरक्षा के लिए उसे इस कार्यक्रम में और अधिक निवेश करना है.”
परमाणु क्षमता
ईरान इस बात पर ज़ोर देता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है. लेकिन डोनाल्ड ट्रम्प 2015 में पश्चिमी देशों के ईरान के साथ किए गए परमाणु समझौते से पीछे हट गए थे. उसके बाद ईरान की परमाणु गतिविधियां सीमित हो गई थीं.
समझौते के तहत ईरान को 3.67% की शुद्धता तक यूरेनियम संवर्धन की अनुमति दी गई थी. कम-संवर्धित यूरेनियम से कॉमर्शियल परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए ईंधन का उत्पादन किया जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) का कहना है कि ईरान अब उस दर को बढ़ा रहा है. और अब वो 60% तक समृद्ध यूरेनियम का उत्पादन कर सकता है.
ईरान ने कहा है कि वह ऐसा उन प्रतिबंधों के जवाब में कर रहा है जिन्हें ट्रम्प ने लगाया था. यूरेनियम से परमाणु हथियार तभी बन सकते हैं जब वो 90% या उससे अधिक संवर्धित हो.
आईएईए प्रमुख, राफेल ग्रॉसी को लगता है कि ईरान ऐसा बदलते क्षेत्रीय समीकरणों के कारण कर रहा है.
रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट थिंक टैंक में परमाणु प्रसार की विशेषज्ञ डारिया डोल्ज़िकोवा कहती हैं, “यह वाकई चिंताजनक तस्वीर है. परमाणु कार्यक्रम 2015 में जहां था, उससे बिल्कुल अलग जगह पर पहुंच गया है.”
एक अनुमान के मुताबिक अगर ईरान चाहे तो वो अब लगभग एक हफ़्ते में एक परमाणु हथियार बनाने के लिए, पर्याप्त यूरेनियम का संवर्धन कर सकता है.
लेकिन हथियार बनने के बाद उसे टार्गेट तक पहुँचाने के लिए वॉरहेड की ज़रूरत होगी जिसे बनाने में एक साल तक का समय लग सकता है.
डोल्ज़िकोवा कहती हैं, “हम नहीं जानते कि ईरान वे टार्गेट तक पहुँचने योग्य परमाणु हथियार बनाने के कितने करीब हैं. लेकिन इसबीच ईरान ने इन हथियारों के निर्माण के बारे बहुत सारी रिसर्च कर ली है. कोई भी ईरान से रिसर्च के ज़रिए अर्जित ज्ञान को नहीं छीन सकता.”
इसराइली इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल सिक्योरिटी स्टडीज़ और तेल अवीव विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. रज़ ज़िम्म्ट कहते हैं, “ये स्पष्ट है कि ट्रंप ईरान पर अपनी दबाव डालने वाली रणनीति को फिर से लागू करने की कोशिश करेंगे.”
“लेकिन मुझे लगता है कि वह ईरान को अपनी परमाणु क्षमताओं को सीमित करने के लिए मनाने की कोशिश भी कर सकते हैं. इसके लिए ट्रंप नए सिरे से बातचीत भी शुरू कर सकते हैं.”
डॉ ज़िम्म्ट के मुताबिक ये देखना होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प क्या करते हैं और ईरान उसकी प्रतिक्रिया में क्या करता है.
लेकिन इस बात की संभावना नहीं है कि ईरान सैन्य टकराव की राह चुनेगा.
तेहरान विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर नासिर हादियान कहते हैं, “मुझे लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप ईरान के साथ बातचीत के बाद और एक समझौता करने की कोशिश करेंगे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ट्रंप अपने ‘अधिकतक दबाव’ वाली रणनीति पर लौटेंगे.”
नासिर हादियान का मानना है कि ‘संघर्ष की तुलना में समझौते की अधिक संभावना’ है.
उनका कहना है, “अगर ट्रंप ‘अधिकतम दबाव’ का रास्ता चुनते हैं तो गड़बड़ हो सकती है. नतीजतन जंग भी हो सकती है और ज़ाहिर ये कोई भी पक्ष नहीं चाहेगा.”
व्यापक गुस्सा
ईरान को कई घरेलू चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह ये है कि ईरान के सर्वोच्च नेता उत्तराधिकारी की तलाश कर रहा है.
डॉ. वकील के अनुसार, “ख़ामेनेई सोते वक्त अपनी विरासत के बारे में चिंता करते हैं. ख़ामेनेई चाहेंगे कि वो ईरान को एक मज़बूत स्थिति में छोड़कर जाएं.”
हिजाब ठीक से न पहनने के आरोप में साल 2022 में महसा जीना अमिनी की मौत के बाद ईरान भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे.
अब भी ईरान की हुकुमत के ख़िलाफ़ रोष है. लोगों का कहना है कि देश में बेरोज़गारी और महंगाई है लेकिन देश के संसाधनों को विदेशों में जंग के लिए झोंका जा रहा है.
ईरान की युवा पीढ़ी, 1979 की इस्लामी क्रांति से तेजी से अलग होती जा रही है. कई लोग सरकार के लगाए हुए सामाजिक प्रतिबंधों से चिढ़ते हैं. हर दिन, महिलाएं शासन की अवहेलना करती हैं, अपने बालों को ढके बिना बाहर निकलने पर गिरफ्तारी का जोखिम तक उठाती हैं.
इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि सीरिया की तरह ईरान के शासन का भी पतन होगा.
जेफरी कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि सीरिया के पतन पर ईरानी लोग सड़कों पर आएंगे. “
होराक का मानना है कि ईरान जैसे-जैसे आंतरिक सुरक्षा बढ़ाने की कोशिश करेगा, असहमति के प्रति उसकी सहनशीलता और भी कम हो जाएगी.
वहां हिजाब न पहनने वाली महिलाओं को सज़ा देने वाला एक कानून जल्द ही लागू होने वाला है.
लेकिन होराक नहीं मानते कि ईरान की सरकार को फ़िलहाल कोई ख़तरा है.
वह कहते हैं, ”लाखों ईरानी इस हुकुमत का समर्थन नहीं करते, लेकिन लाखों लोग ऐसे भी हैं जो अब भी इसका पूरा समर्थन करते हैं. मुझे नहीं लगता कि निकट भविष्य में इसके गिरने का कोई ख़तरा है.”
लेकिन घरेलू स्तर पर लोगों का गुस्सा और सीरिया में मिली मात ने ईरान के शासकों का काम थोड़ा मुश्किल तो बना दिया है.