Delhi Shahi Eidgah: दिल्ली में शाही ईदगाह के पास पार्क में रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। इस मामले में हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह प्रबंधन समिति को कड़ी फटकार लगाई। इसके बाद समिति ने हाईकोर्ट में लिखित में माफी मांगी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा का विवाद
रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा का विवाद तब शुरू हुआ जब इसे शाही ईदगाह के पास एक पार्क में स्थापित किया गया। यह कदम विभिन्न समुदायों के बीच असहमति का कारण बना, जिसके परिणामस्वरूप अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। समिति के वकील ने अदालत में कहा कि वे एक संशोधित याचिका दाखिल कर रहे हैं।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
हाईकोर्ट ने एकल पीठ में पार्क को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की संपत्ति करार दिया। इसके बाद ईदगाह समिति ने इस निर्णय के खिलाफ दोहरी पीठ में अपील की। इस अपील में कोर्ट ने याचिका में साम्प्रदायिक भाषा के प्रयोग पर आपत्ति जताई।
इसके बाद, अदालत ने समिति को लिखित में माफी मांगने का आदेश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा पर नमाज अदा करने में कोई समस्या नहीं है। रानी लक्ष्मीबाई एक धार्मिक आकृति नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय नायिका हैं। 1857 की लड़ाई को हम कभी नहीं भूल सकते।
माफी का स्वीकार करना
हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह समिति की माफी को स्वीकार कर लिया। यह महत्वपूर्ण कदम यह दर्शाता है कि अदालत साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय पहचान के प्रति सजग है। अगले सुनवाई की तारीख 4 अक्टूबर (शुक्रवार) निर्धारित की गई है।
कोर्ट की अपेक्षाएँ
कोर्ट ने यह भी कहा कि रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा DDA की भूमि पर स्थापित की जाएगी और ईदगाह का इस भूमि से कोई लेना-देना नहीं है। यह प्रतिमा रानी झाँसी फ्लाईओवर के पास के चौराहे पर स्थापित की गई है, जिसका कार्य लक्ष्मीबाई मेमोरियल कमेटी द्वारा किया गया है।
वक्फ बोर्ड का दावा
वक्फ बोर्ड ने DDA पार्क पर अपना दावा पेश किया और अदालत में याचिका दायर की। अदालत ने 19 सितंबर तक पार्क में किसी भी कार्य को रोकने का आदेश दिया। हालांकि, बाद में अदालत के आदेश के बाद DDA के पक्ष में निर्णय आया और काम शुरू हो गया। समिति के सदस्य गुलशन राय वर्मानी ने कहा कि यह कार्य MCD और DDA के सहयोग से किया जाएगा।
साम्प्रदायिक तानाबाना
यह मामला केवल रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साम्प्रदायिक सद्भाव और राजनीतिक हितों के बीच के टकराव को भी दर्शाता है। रानी लक्ष्मीबाई का इतिहास और उनकी बहादुरी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और उन्हें केवल एक धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए।