डॉक्टरों ने कहा है कि एचएमपीवी या ह्यूमन मेटा न्यूमोनिया वायरस कोविड-19 जितना हानिकारक नहीं है. बेंगलुरु में दो शिशुओं में वायरस का पता चलने पर दहशत फैलने के बीच डॉक्टरों ने अपनी राय ज़ाहिर की है.
तीन और आठ महीने के शिशुओं को शहर में एचएमपीवी के लिए पॉज़िटिव पाया गया था. अब इनकी हालत ठीक है. इन बच्चों का इलाज एक निजी बैपटिस्ट अस्पताल में हुआ.
दरअसल, तीन महीने की बच्ची को शनिवार को छुट्टी दे दी गई और आठ महीने के बच्चे को मंगलवार को छुट्टी दे दी जाएगी.
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने औपचारिक रूप से घोषणा की है कि दोनों शिशुओं में ब्रोन्कोन्यूमोनिया का इतिहास रहा है और कई सांस संबंधी बीमारियों की नियमित निगरानी के दौरान उनमें ये वायरस पाया गया है.
चीन में इस वायरस के तेज़ी से फैलने के बारे में सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा छिड़ी है.
इसके बाद से दो बच्चों को हुई इस इन्फ्लूएंज़ा जैसी बीमारी के बारे में भी चर्चा छिड़ गई.
कितनी ख़तरनाक है बीमारी?
जाने-माने वायरोलॉजिस्ट डॉ. वी रवि ने बीबीसी हिंदी को बताया, “इस बारे में बहुत ज़्यादा प्रचार किया गया है. इस वायरस की खोज 15-16 साल पहले हुई थी. यह एक मौसमी संक्रमण है.”
“यह आमतौर पर इन्फ्लूएंज़ा के मामलों के साथ-साथ होता ही होता है और सबसे पहले बच्चे ही इससे संक्रमित होते हैं.”
डॉ. गगनदीप कांग वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) में सहायक प्रोफ़ेसर हैं और गेट्स फाउंडेशन, यूएस के ग्लोबल हेल्थ डिवीज़न से भी जुड़ी हैं.
उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, “चीन से जो रिपोर्टें आ रही हैं, उसके अनुसार वहां एचएमपीवी के अलावा दूसरे वायरस भी हैं. ये एक नॉर्मल सी घटना है कि आपके पास संक्रमण पैदा करने वाले अलग-अलग वायरस का मिश्रण हो.”
“आमतौर पर सर्दियों और वसंत के दौरान ऐसे संक्रमण अधिक हो सकते हैं. इनका अलग-अलग इलाक़ों में अलग-अलग असर होता है. हमें घबराने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है.”
कर्नाटक स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इस वायरस के संक्रमण के लक्षणों में खांसी, बुख़ार, नाक बंद होना और सांस लेने में तकलीफ़ और फ़्लू शामिल हैं. अधिक गंभीर मामलों में, इससे ब्रोंकाइटिस या निमोनिया भी हो सकता है.
इसका असर ख़ासकर छोटे बच्चों, बुजुर्गों और कम इम्युनिटी वाले लोगों पर अधिक होता है.
ये वायरस छींक से निकली बूंदों, क़रीबी व्यक्तिगत संपर्क और वायरस से दूषित जगहों को छूने के बाद मुंह, नाक या आंखों को छूने से फैलता है.
कर्नाटक के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के एक विश्लेषण से पता चला है कि भारत में भी एचएमपीवी के मामलों में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है.
स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव की अध्यक्षता में स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष अधिकारियों की बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा गया, “चिंता का कोई कारण नहीं है, लेकिन ऐहतियात बरतने की सिफ़ारिश की जाती है.
डॉ. रवि ने बीबीसी हिंदी को बताया, “यह एक मौसमी संक्रमण है. यह इन्फ्लूएंज़ा के साथ-साथ होता है. बच्चे आमतौर पर पहले संक्रमित होते हैं. और बुज़ुर्ग भी इसके प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं. लेकिन संक्रमण की संभावना उतनी नहीं होती जितनी कोविड में होती है.”
कोविड से कितना अलग है?
डॉ. अनीश टी.एस. केरल वन हेल्थ सेंटर फॉर निपाह रिसर्च एंड रेजिलिएंस के नोडल अधिकारी हैं.
उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, “एचएमपीवी कोविड 19 से अलग है. कोविड एक नया वायरस था. इस वजह से किसी भी इंसान में इसके प्रति दूसरे वायरस की तरह प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी.”
डॉ. कांग ने कहा, “अगर बच्चों को ख़तरे वाले वायरस की रैंकिंग की जाए तो मैं आरएसवी या रेस्पिरेटरी सिंसिटियल वायरस को नंबर एक वायरस के रूप में रखूंगी.”
“एचएमपीवी का पता सांस की तकलीफ़ के कारणों की जांच के दौरान चला. इसलिए शुरू में इसके बारे में अधिक जानकारी सामने नहीं आई लेकिन अब साफ़ है कि ये एचएमपीवी है.”
आरएसवी एक आम लेकिन अत्यधिक संक्रामक वाला वायरस है जो दिसंबर-जनवरी के दौरान अपने चरम पर होता है.
यह फेफड़ों, नाक और गले को संक्रमित करता है और कमज़ोर व्यक्तियों में गंभीर बीमारी या मृत्यु का कारण भी बन सकता है.
डॉ. अनीश और डॉ. कांग दोनों इस बात पर सहमत हैं कि जब बच्चा पाँच साल या उससे ज़्यादा उम्र का हो जाता है तो वह इस वायरस से मुकम्मल इम्युनिटी हासिल कर लेता है.
डॉ. कांग ने कहा, “इस वायरस का दोबारा संक्रमण हो सकता है लेकिन आमतौर पर यह एक हल्का संक्रमण होता है. यह बहुत छोटे बच्चों, वयस्कों या उन लोगों में गंभीर हो सकता है जिनके फेफड़े क्षतिग्रस्त हो गए हैं या जिन्हें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ है या जिनकी इम्युनिटी कमज़ोर है. बाक़ी लोगों में इसके कारण लंबे समय तक खांसी हो सकती है. लेकिन हमारे लिए चिंता करने लायक कोई बड़ी बात नहीं है.”
चीन की तरह भारत में क्यों नहीं फैल रहा?
डॉक्टर अनीश के अनुसार, ऐसी संभावना है कि ये चीन की तरह भारत में न फैल रहा हो क्योंकि इसकी संक्रमण दर धीमी हो सकती है.
अनीश कहते हैं, “चीन में भारत की तुलना में अलग-अलग समय पर और अलग-अलग वजहों से लंबे लॉकडाउन रहे हैं. जब वहां लोगों के बीच कोई संपर्क नहीं था, वहां न केवल कोविड संक्रमण बल्कि दूसरे वायरस भी एक-दूसरे से फैलना बंद हो चुके थे. ये भी संक्रमण के तेज़ी से फैलने की वजह हो सकती है.”
इसी तरह का नज़रिया केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने भी सोशल मीडिया पोस्ट में पेश किया है.
उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि ‘लॉकडाउन जैसी पाबंदियां सभी तरह के संक्रमणों को फैलने पर रोक लगा सकती हैं, ख़ासतौर से हवा से फैलने वाले संक्रमण पर. चीन में लंबे समय तक चले लॉकडाउन की वजह से हवा से फैलने वाले सभी तरह के संक्रमणों की महामारी में बदलाव आ सकता है और एक बड़ी आबादी अति संवेदनशील हो सकती है. ये इन्फ़्लूएंज़ा और एचएमपीवी समेत कई बीमारियों पर लागू होता है.”
तो लोगों को क्या करने की ज़रूरत है?
डॉक्टर रवि कहते हैं कि सबसे अच्छी चीज़ है कि संक्रमण की रोकथाम की जाए.
उन्होंने कहा, “अगर लोगों को सर्दी या ख़ासी के लक्षण हैं तो सबसे अच्छी चीज़ है कि वो घर पर रहें क्योंकि एचएमपीवी के साथ काम करने वाला कोई भी एंटी-वायरल नहीं है.”
“संक्रमण की संभावना कोविड जितनी अधिक नहीं है. और भीड़ में संक्रमण फैलता है.”